सुप्रीम कोर्ट ने सिविल प्रक्रिया पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के आदेश XXXVII के तहत एक समरी सूट में प्रतिवादी को अदालत से ‘बचाव की अनुमति’ (Leave to Defend) प्राप्त किए बिना जवाब या बचाव दाखिल करने की अनुमति देना एक प्रक्रियात्मक विचलन है जो “मामले की जड़ पर प्रहार करता है।” न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक प्रतिवादी को बिना ऐसी अनुमति के ‘निर्णय के लिए समन’ (Summons for Judgment) का जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई थी।
सर्वोच्च अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि इस अनिवार्य कदम को दरकिनार करने से एक नियमित रूप से दायर मुकदमे और एक समरी सूट के बीच का अंतर समाप्त हो जाता है, जिससे सीपीसी के आदेश XXXVII में निर्धारित विशिष्ट प्रक्रिया कमजोर होती है।