भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है कि किसी अनुबंध में विवाद समाधान क्लॉज (clause), जो ‘मध्यस्थता’ (arbitration) शब्द का उपयोग करने के बावजूद अंततः पक्षकारों को “कानूनी अदालतों के माध्यम से उपचार” (remedies through the courts of law) खोजने की अनुमति देता है, वह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C Act) के तहत एक वैध मध्यस्थता समझौता नहीं माना जाएगा।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने M/s अल्केमिस्ट हॉस्पिटल्स लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि की। कोर्ट ने माना कि उक्त क्लॉज में अंतिम रूप से बाध्यकारी होने का गुण (attribute of finality) नहीं था और यह केवल सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए एक बहु-स्तरीय प्रक्रिया थी, न कि बाध्यकारी मध्यस्थता।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद M/s अल्केमिस्ट हॉस्पि

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