साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के दायरे और फोरेंसिक रिपोर्ट के साक्ष्य मूल्य को स्पष्ट करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक व्यक्ति को बरी कर दिया है। कोर्ट ने माना कि केवल एक बैलिस्टिक (FSL) रिपोर्ट के आधार पर दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता, जो बरामद हथियार और गोलियों का मिलान करती हो, खासकर तब जब प्रमुख चश्मदीद गवाह मुकर गए हों और सबूतों की श्रृंखला (chain of custody) टूटी हुई हो।

न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने गोविंद बनाम हरियाणा राज्य मामले में अपील को स्वीकार कर लिया और अपीलकर्ता की सजा और आजीवन कारावास को रद्द कर दिया, जो उसे आईपीसी की धारा 302 और आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत दी गई थी। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 27 के तहत किसी खोज को स्वीकार्य होने के लिए, उसे “स्पष्ट रूप से” खोजे गए तथ्य से संबंधित होना चा

See Full Page