सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि दीवानी (Civil) उपचार की उपलब्धता किसी आपराधिक अभियोजन (Criminal Prosecution) को रोकने का आधार नहीं हो सकती, यदि आरोपों में अपराध के आवश्यक तत्व मौजूद हों। कोर्ट ने कहा कि दीवानी और आपराधिक कार्यवाही साथ-साथ चल सकती हैं।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें अपीलकर्ता ‘रॉकी’ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 344 (गलत तरीके से कैद करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत संज्ञान को बरकरार रखा गया था।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या हाईकोर्ट धारा 482 सीआरपीसी (CrPC) के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए कार्यवाही को रद्द करने से इनकार करने में सही था।

अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि पूरा मामला दीवानी प्रकृति का है

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