उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि अभिभावकता और मुलाकात के अधिकार से जुड़े मामलों में नाबालिग बच्चे की इच्छा और मानसिक शांति को सर्वोच्च महत्व दिया जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश रविन्द्र मैठानी और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने गजेन्द्र सिंह द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें बच्चे की अभिभावकता उसकी मां शिवानी को सौंपी गई थी।
गजेन्द्र सिंह ने 2023 में विकासनगर (देहरादून) के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया कि निचली अदालत ने केवल बच्चे के बयान के आधार पर फैसला दे दिया, जबकि उस समय उसकी आयु महज पांच वर्ष थी।
सिंह का कहना था कि बच्चा ‘पैरेंटल एलियनेशन सिंड्रोम’ (Parental Alienation Syndrome) से पीड़ित है — यानी मां ने मानसिक रूप से बच्चे को प्रभावित किया है, जिससे वह दादा-दादी

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