सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि हाईकोर्ट किसी एफआईआर (FIR) के कुछ अपराधों को समझौते के आधार पर रद्द कर देता है, तो उसी घटनाक्रम (Single Transaction) से जुड़े अन्य अपराधों के लिए एफआईआर को बनाए रखना उचित नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यदि समझौता “व्यक्तिगत अपराधों” को रद्द करने के लिए पर्याप्त है, तो यह डकैती जैसे गंभीर आरोपों की भी बुनियाद को कमजोर करता है जो उन्हीं तथ्यों पर आधारित हैं।
17 नवंबर, 2025 को दिए गए एक फैसले में, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें एफआईआर को विभाजित कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने मारपीट और धमकी के आरोपों को तो समझौते के आधार पर रद्द कर दिया था, लेकिन डकैती के आरोप को यह कहते हुए बरकरार रखा था कि यह समाज के खिलाफ अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस “आंशिक

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