केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि वैवाहिक क्रूरता के मामलों में पुलिस शिकायत दर्ज कराने में हुई देरी अभियोजन पक्ष (prosecution) के मामले को कमजोर नहीं करती है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि एक पत्नी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह क्रूरता की पहली घटना पर ही “पुलिस स्टेशन की ओर दौड़ पड़े।”
जस्टिस एम.बी. स्नेहलता ने पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका (Revision Petition) को खारिज करते हुए उसकी सजा बरकरार रखी। कोर्ट ने माना कि पीड़ित महिलाएं अक्सर सुलह की उम्मीद और अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए उत्पीड़न सहती रहती हैं।
क्या था मामला?
यह मामला टोमोन बनाम केरल राज्य का है। याचिकाकर्ता (पति) ने अपनी दोषसिद्धि (conviction) को मुख्य रूप से इस आधार पर चुनौती दी थी कि शिकायत दर्ज कराने में बहुत देरी हुई थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 2003 में शादी के तुरंत बाद से

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