सुप्रीम कोर्ट ने मारपीट और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) के तहत दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों की सजा को रद्द कर दिया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी पक्षद्रोही गवाह (Hostile Witness) की गवाही को केवल इसलिए पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि वह अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं कर रहा है। यदि उसकी गवाही का कोई हिस्सा बचाव पक्ष का समर्थन करता है और विश्वसनीय है, तो उस पर भरोसा किया जा सकता है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 18 जनवरी, 2024 के फैसले को पलटते हुए अपीलकर्ताओं, दादू उर्फ अंकुश और अंकित, को बरी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या गवाहों के बयानों और मेडिकल रिपोर्ट में विरोधाभास होने के बावजूद सजा बरकरार रखी जा सकती है, और क्या हाईकोर्ट का यह नि

See Full Page