सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि एक नॉन-सिग्नेटरी (गैर-हस्ताक्षरकर्ता) सब-कॉन्ट्रैक्टर, जिसका मुख्य नियोक्ता (Principal Employer) के साथ कोई सीधा अनुबंध नहीं है, वह मुख्य नियोक्ता के खिलाफ आर्बिट्रेशन (मध्यस्थता) की कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता।

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) और बीसीएल सिक्योर प्रेमिसेस प्राइवेट लिमिटेड (BCL) के बीच विवाद को सुलझाने के लिए एक मध्यस्थ (Arbitrator) नियुक्त किया गया था। कोर्ट ने कहा कि HPCL और BCL “अलग-अलग कक्षाओं (separate orbits)” में काम कर रहे थे और उनके बीच अनुबंध का कोई सीधा संबंध (Privity of Contract) नहीं था।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या बॉम्बे हाईकोर्ट का आर्बिट्

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