दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही के एक फैसले में किरायेदारी के एक मामले में रेंट कंट्रोलर (किराया नियंत्रक) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें संपत्ति पर काबिज लोगों को ‘लीव टू डिफेंड’ (जवाब दाखिल करने की अनुमति) दी गई थी।
न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने पुनरीक्षण याचिका (RC.REV. 39/2024) की अध्यक्षता करते हुए माना कि संपत्ति पर काबिज लोग, जो कथित तौर पर अनधिकृत उप-किरायेदार थे, कोई भी विचारणीय मुद्दा (triable issue) उठाने में विफल रहे। अदालत ने कहा कि मूल किरायेदार ने बेदखली याचिका का विरोध नहीं किया था, और वर्तमान कब्जेदार “परस्पर विरोधी, आत्म-विरोधाभासी और स्वाभाविक रूप से विनाशकारी दलीलें” दे रहे थे। नतीजतन, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता-मकान मालिकों के पक्ष में बेदखली का आदेश पारित कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ताओं (मकान मालिक, सुश्री फरहीन इसराइल और अन्य) ने दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट, 1958

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