सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मध्यस्थता निर्णय (arbitral award) की घोषणा में “अनावश्यक और अस्पष्टीकृत देरी” अपने आप में उसे रद्द करने का पर्याप्त आधार नहीं है। कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2025 के अपने फैसले में कहा कि यह दिखाना होगा कि देरी का अंतिम निर्णय पर “प्रतिकूल प्रभाव” पड़ा, जिससे वह विकृत (perverse) या “स्पष्ट रूप से अवैध” (patently illegal) हो गया।
इसी सिद्धांत को लागू करते हुए, एम/एस लैंकॉर होल्डिंग्स लिमिटेड बनाम प्रेम कुमार मेनन व अन्य (2025 INSC 1277) मामले में, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने एक मध्यस्थता निर्णय को रद्द कर दिया। इस मामले में, निर्णय सुनाने में लगभग चार साल की देरी हुई, जिसे कोर्ट ने “निष्प्रभावी और व्यर्थ” (ineffective and futile) और “अव्यवहारिक” (unworkable) निर्णय का सीधा कारण माना, जो “भारत की सार्वजनिक

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