सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि डीएनए जांच को जांच के नियमित साधन के रूप में नहीं अपनाया जा सकता और इसे केवल उन असाधारण परिस्थितियों में ही आदेशित किया जाना चाहिए, जहाँ न्याय के हित में ऐसा करना अनिवार्य हो। अदालत ने कहा कि डीएनए परीक्षण एक व्यक्ति की निजता और शारीरिक स्वायत्तता में गंभीर हस्तक्षेप है, और इसलिए इसे संवैधानिक सुरक्षा उपायों के अधीन रहना चाहिए।
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विपुल पंचोली की खंडपीठ ने कहा कि डीएनए टेस्ट के आदेश में “अत्यंत सावधानी” बरती जानी चाहिए ताकि वैवाहिक संबंधों की पवित्रता और वैवाहिक जीवन में जन्मे बच्चों की वैधता को संदेह के घेरे में न लाया जाए।
खंडपीठ ने कहा, “डीएनए परीक्षण को सामान्य प्रक्रिया के रूप में आदेशित नहीं किया जा सकता और इसे सख्त सुरक्षा उपायों के तहत ही किया जाना चाहिए ताकि व्यक्तियों की गरिमा और वैवाहिक जीवन में जन्

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