दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पॉक्सो अधिनियम के तहत किसी मामले में दोषसिद्धि के लिए बाल पीड़िता की एकमात्र गवाही ही पर्याप्त है और इसके लिए किसी अतिरिक्त संपुष्टि (corroboration) की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने एक 7 वर्षीय बच्ची के सुसंगत और विश्वसनीय बयान पर भरोसा करते हुए एक दुकानदार की दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कोई अपील स्वयं दोषी द्वारा दायर की जाती है, तो अपीलीय अदालत उसकी सजा को बढ़ा नहीं सकती या उसे किसी ऐसे गंभीर अपराध के लिए दोषी नहीं ठहरा सकती जिससे निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया हो।
यह अपील दोषी राजेंद्र सिंह द्वारा तीस हजारी कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई थी, जिसमें उसे पॉक्सो एक्ट की धारा 7 और 9 के तहत पांच साल के कठोर कारावास और 30,000 रुपये के जुर्मा