आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुआवज़े पर एक मध्यस्थ के फैसले को केवल मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत उपलब्ध वैधानिक उपचारों के माध्यम से ही चुनौती दी जा सकती है। न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति महेश्वर राव कुंचेम की खंडपीठ ने एक रिट अपील को खारिज करते हुए एकल न्यायाधीश के उस फैसले की पुष्टि की, जिसमें याचिकाकर्ताओं को मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत आवेदन दायर करने का निर्देश दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला कृष्णा जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 216 के चौड़ीकरण के लिए देवभक्तुनी राम लिंगेश्वर राव और सात अन्य की भूमि के अधिग्रहण से जुड़ा है। राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) अधिनियम, 1956 की धारा 3A के तहत 13 जनवरी 2016 को एक अधिसूचना जारी होने के बाद, सक्षम प्राधिकारी ने