सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (अब कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923) के तहत मुआवजे के दावे में एक बीमा कंपनी को पक्षकार बनाया जा सकता है और उसे नियोक्ता के साथ संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया जा सकता है। जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मुआवजे के भुगतान की प्रारंभिक देनदारी पूरी तरह से नियोक्ता पर डाल दी गई थी और उसे बाद में बीमाकर्ता से राशि की प्रतिपूर्ति करने का प्रावधान किया गया था। शीर्ष अदालत ने कर्मकार प्रतिकर आयुक्त, पश्चिम बंगाल द्वारा पारित फैसले को बहाल कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक ड्राइवर (दूसरे प्रतिवादी) द्वारा अपने नियोक्ता, आलोक कुमार घोष (अपीलकर्ता), और द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (पहले प्रतिवाद

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