सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि बच्चे के जन्म के अवसर पर आयोजित ‘छूछक’ (Chhoochhak) समारोह के दौरान सोने के आभूषणों की मांग को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B के तहत ‘दहेज की मांग’ नहीं माना जा सकता।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने माना कि धारा 304B के तहत अपराध के लिए संपत्ति या सुरक्षा की मांग का “विवाह के संबंध में” होना अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे के जन्म से जुड़ी रस्मों के दौरान उपहारों की मांग को दहेज कानून के दायरे में नहीं लाया जा सकता। इस आधार पर कोर्ट ने पति की धारा 304B (दहेज मृत्यु) के तहत सजा को रद्द कर दिया, हालांकि धारा 498A (क्रूरता) के तहत उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला नवंबर 1986 का है, जब अपीलकर्ता बाबू खान का विवाह खातून (मृतका) के साथ हुआ था। मई 1988 में दंपति को एक पुत्र की प्र

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